Monday, April 4, 2011

युवाओं तुम्हीं विजेता हो

सन्तोष पाण्डेय

वल्र्ड कप की जीत में डूबा पूरा भारत इस बात को भूल गया है कि इस बार का विष्व कप सचिन और सहवाग के बेहतरीन प्रदर्षन से नहीं बल्कि धोनी, युवराज व सुरेश रैना के बेहतरीन प्रदर्षन से भारत ने जीता है। जितने वर्शाें के बाद यह वल्र्ड कप फिर भारत ने जीता है लगभग उतने हीं वर्शीय के खिलाडि़यों के दम पर यह वल्र्ड कप भारत में आया है। भारत ने यह पहली बार कर दिखाया है मेजबान देश ने पहली बार बल्र्ड कप पर अपना कब्जा जमाया है। अभी तक ख्ेाले गयें सभी वल्र्ड कप मेजबान देश नहीं बल्कि मेहमान देश ही जीतता आया है। ये कारनामा देश के युवाओं ने कर दिखाया है। धोनी ने कम उम्र में जा कारनामा कर दिखाया है उससे यह समझ में आता है कि किसी भी कार्य के लिए ज्यादा अनुभव नहीं कार्य में प्रवीणता और जुनून की जरूरत होती है। जो कार्य सचिन व अन्य पुराने खिलाडि़यों ने नही कर दिखाया वह कार्य धोनी कि युवा टीम ने कर दिखाया है। ठीक यही हाल हर क्षेत्र में होना चाहिए । युवाओं का अधिकार हर क्षेत्र में होना चाहिए। युवा देष का नेतृत्व क्यों नहीं कर सकता । ऐसे लोगों के हाथ में कमान नहीं होनी चाहिए जो खुद को ना सम्हाल सके। देश की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए जो धोनी की तरह हो मौका पड़ने पर खुद टीम को जीत दिला दे। जिस देश में बैषाखी के बल पर नेताओं को ढोना पड़ता है उस देश को कैसे विकाष के पथ पर आगे बढ़ाया जा सकता है। इसकी कल्पना देष का हर नागरिक कर सकता है। ये वहीं देष है जहां महात्मा गांधी जैसे उम्रदराज लीडर होते थे और स्वामी विवेकानन्द जी जैसे लोग जो देश ही नहीं पूरे विष्व में पूज्यनीय रहे है। वल्र्ड कप के जष्न में लोगों ने जितना उत्साह दिखाया है उतना ही उत्साह अगर देष से भ्रश्टाचार और भ्रश्ट नेताओं को दूर करने के लिए दिखाते तो आज देश की तष्वीर कुछ और होती । आखिर लोगों को भ्रश्टाचार को दूर करने के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखा पा रहे है। इसके पीछे का कारण पर जब तरंग भारत ने पड़ताल किया तो बड़ा रोचक मामला सामने आया । बात यह है कि युवा अभी तक भारत की राजनीति में लिप्त नहीं होना चाहता था। तो सीधी बात बुजुर्गो के हाथ में कमान रही । आज जब टीम इंडिया युवा खिलाडि़यों के बल पर विजय श्री हुई है तो युवाओं में प्रशन्नता व्याप्त है। इस वल्र्ड कप के जष्न से एक बात सामने आई की अब युवाओं को पुराने लोगांे के नेतृत्व में रहना नहीं पसंद हैं। जो भी हो एक बात साफ है युवाओं को अब जष्न मनाने आ गया है । कहीं भी कोई उपद्रव नहीं हुआ जो एक बात का सुबूत दिया कि अब भारत का युवा समझदार हो गया है।

गर्दिश में इलाहाबाद का युवा

सन्तोष पाण्डेय

भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है। वो हैं भी । लेकिन दुःख इस बात का हैं केवल जुवानी तीरे तरकश से छोड़ी जा रही है। एक समय था जब गांव का हर बच्चा इलाहाबाद में तैयारी रना चाहता था। मतलब इलाहाबाद में पढ़ने के लिए मन में उत्सुक रहता था। जब कोई भी गांव में इलाहाबाद से स्टूडेंट आ जाता था तो गांव के सभी बच्चों में उत्साह रहता था कि इलाहाबाद वाले भैया आयें है चलो उनसे कुछ पढ़ाई के बारे में पूछा जाए। लेकिन अब वो उत्साह न तो इलाहाबाद में पढ़ने वाले बच्चों में रहा और न ही गांव के बच्चों में रहा ये गिरावट मात्र हाल के तीन चार सालों से देखी जा रही है। आखिर ये गिरावट क्यों आई। जैसे जैसे गंगा को लोग कचड़े डाल के गंदा कर रहे है। वैसे वैसे इलाहाबाद के छवि में गिरावट आ रही है। छात्रों में गिरावट और में बढ़ता प्रदूषण का स्तर साथ साथ चल रहा है। लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेदार है इस पर कोई कुछ कहने के लिए तैयार नहीं है। कारण जो भी लेकिन राजनीति की बू आ रही है।



तरंग भारत ने इलाहाबाद में तैयारी करने वाले बच्चों का सर्वें किया जिसमें पाया कि इलाहाबाद में बच्चे जिन उद्ेष्ययों को लेकर पहले आते थे अब उनमें गिरावट आया है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 10 में से हर 7 छात्र इलाहाबाद में इस लिए आता है कि इलाहाबाद में तैयारी करने वाले छात्र आईएएस और पीसीएस होते है। लेकिन वहीं 3 छात्रों का मानना है कि इलाहाबाद से अच्छा आस पास में कोई विकल्प नहीं है। जो भी सभी छात्रों का मानना है कि गिरावट आया है। इलाहाबाद और इलाहाबाद में तैयारी करने वाले छात्रों में । युवाओं के लिए कार्य करने हिन्दी में देष की पहली वेबसाइट तरंग भारत ने इस मसले पर कई तरह के छात्रों को अपने सर्वें में लिया था। जिसमें बीएड करके टीचर बनने की सपनें मन में सजोंये छात्रों को भी सामिल किया गया था। पीजीटी की तैयारी करने वाले राकेश और पंकज का मानना है कि अब इलाहाबाद में वो चीजें नहीं रह गई। मां बाप का अब इलाहाबाद से भी विष्वास उठ रहा है। धीरे धीरे इलाहाबाद तैयारी करने आने बच्चे के लिए कठिन हो जाएगा। कारण अब बच्चों का प्रदर्षन भी उतना ठीक नहीं रहा । वहीं एक छात्र बृजेश का मानना है कि इसके पीछे लम्बी पढ़ाई जिम्मेदार है।



इनका मानना है कि अब हर छात्र और उसके मां बाप दोनों जल्द से जल्द बच्चे को रोजगारपूर्ण देखना चाहते है। इसी कारण दोनांे तनाव में रहते है। और एक बार विफल होने से परिणाम खराब आने लगे है। जो भी हो इलाहाबाद के छात्रों में बड़ा तनाव मन में अवसाद देखा जा रहा है। वहां कई छात्र कहते हुए मिले कि जब से जुगाड़ तंत्र हो गया है तब से बच्चों के पढाई में गिरावट आया है। कुछ छात्रों का कहना था कि आने वाले दिनों में और भी खराब परिणाम आने की संभावना है। देश को अगर बचाना है तो नेताओं नहीं बल्कि इन युवाओं को खुद आगे आना होगा। भारत में यूपी हो या अन्य प्रदेश युवाओं का नेतृत्व 70 से 50 साल के नेताओं के हाथ में जिसका परिणाम साफ है न तो देश का युवा मजबूत हो पा रहा है और न देश की स्थिति मजबूत हो रही है। युवा अपराध और अन्य कार्या में लिप्त हो रहा है। देश को युवाओं सम्भालों नहीं तो न युवा बदलेगा और नहीं देश का बदलाव होगा । भारत को तरंगित करने के लिए युवाओं आगे आना होगा। वहीं सरकार को लेकर युवाओं में काफी रोष था। हो सकता है 2012 में युवाओं का रोष कुछ नया कर दे। इससे लोगों को हैरान होने की कोई जरूरत नहीं है। भारत के युवाओं में बदलाव की पहल लाने की काबलियत है।

Sunday, March 6, 2011

युवा बनेगें जीत के कर्णधार



भारत को अर्थ व्यवस्था के लिए कृषि प्रधान देश कहा जाता है लेकिन शक्ति के लिए भारत का युवा । जीं हां इस बार उत्तराखण्ड के विधान सभा चुनाव में युवाओं को विशेष शक्ति नहीं बल्कि कर्णधार माना जा रहा है। यूं तो उत्तराखण्ड युवा उत्तराखण्ड माना जाता है मतलब युवाओं का उत्तराखण्ड । लेकिन जब से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है तब से इस प्रदेश की कमान बुजुर्ग नेताओं के हाथ में रही है। लेकिन भाजपा ने जब से रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बनाया तभी से प्रदेश में एक बयार बह चली की अब प्रदेश में युवाओं को तहजीब मिलेगा। इस बार निशंक सरकार वहीं कर रही है जो यहा का युवा चाहता है। मसलन पंद्रह वर्षों से देहरादून डीएवी पीजी कालेज का दीक्षांत समारोह नहंी हुआ था जिसको निशंक के जरिए पूरा किया । दीक्षांत समारोह को भाजपा के पूर्व राष्ट्ीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में संपन्न किया गया । उत्तराखण्ड राज्य 9 नवंबर 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग हुआ था। इस नवोदित राज्य की पूरी जनसंख्या 84 लाख 89 हजार 3 सौ 39 है, जिसमें युवा मतदाताओं की संख्या 33 लाख के उपर है। आकड़ों की माने तो 18 से 29 साल के युवाओं की संख्या 18 लाख 71 हजार 241 है। इनकी मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता । लिहाजा इस बार के बजट में निशंक इन युवाओं को कुछ दे सकते है। रोजगार और शिक्षा पर यह सरकार विशेष ध्यान दे रही है। 2002 में 70 वर्षीय नारायण दत्त तिवारी को इस प्रदेश की कमान सौंप दी गई थी । लिहाजा 2006 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। भाजपा नें भी वही ंकिया । जिसका खामियाजा 2009 के लोकसभा के चुवान में उठाना पड़ा। इस बार भाजपा सजग लग रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है िकइस बार का चुनाव युवाओं को ध्यान में रखकर लड़े जाने की तैयारी रहेगी। चाहे कोई भी पार्टी हो प्रदेश में युवाओं पर बगुले की तरह नजर गड़ाये बैठी है। वैसे तो इस बार यह भी माना जा रहा है कि भाजपा, कांग्रेस व अन्य सभी युवा प्रत्याशी उतारने के फिराक में है। युवाओं को रिझाने के लिए युवा प्रत्याशियों को मैदान में उतारा जाएगा। भाजपा के पास युवा विधायको की लिस्ट अच्छी है। भाजपा के पास अगर सुरेन्द्र सिंह जीना, कुलदीप कमार, अजय टम्टा जैसे विधायकों की लिस्ट है तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पास भी करन मेहरा, प्रीतम सिंह, मनोज तिवारी जैसे युवा विधायक है। प्रदेश में इन दोनों पार्टियों को इसी लिए लाभ मिलता रहा है। और पार्टियों के पास अभी तक न तो युवा नेतृत्व है और न तो युवाओं को रिझाने के लिए युवा नेता । इस तो जिस पार्टी के पास अधिक युवा कैन्डीडेट होगें वहीं सरकार बनाने में सक्षम होगी। निशंक सरकार पूरी तरह से युवाओं के लिए कार्य कर रही है। यहां तक की निशंक का दौरा भी स्कूल और कालेजों से हो कर गुजरने का प्रयास किया जा रहा है। जो भी इस बार चुनाव में युवा ही जीत के कर्णधार बनेगे।
सन्तोष पाण्डेय

Saturday, February 26, 2011

यूपी में चेहरे की काट का होड़




सन्तोष पाण्डेय

एक कहावत सभी ने सुनी होगी। लोहे को लोहे से काटा जाता है । ठीक उसी प्रकार से उत्तरप्रदेश में हो रहा है। उत्तरप्रदेश में एक नहीं कई चेहरे राजनीति में हलचल मचाये हुए है । चाहे वो मिश्र हो या पुनिया ।बात तो राजनीति की है। इन्हीं चेहरों की काट करने के लिए नये चेहरों को सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि जो चेहरे सामने लाए जा रहे है ।वो कभी बहुत मजबूत माने जाते थे। बात बस इतनी है कि उन्हें बीच में कुछ समय के लिए जैसे भूला दिया गया हो। हम बात कर रहे है मिश्रा चेहरों की । पिछले लोकसभा सभा या 2007 के विधान सभा चुनावों में सबसे ज्यादा नुकशान हुआ है तो केवल बस केवल भाजपा को । राजनीतिक गलियारे में जो चर्चा रही उसमें एक बात हमेशा की जा रही थी की भाई बसपा के पास तो सतीश मिश्र जी है। तो कुछ लोगों ने टपाक से कहा कि तो क्या भाजपा के पास कलराज जी नही है। हां कलराज जी का चुनाव में प्रयोग नहीं किया । हो सकता है उसका परिणाम यही रहा हो। सपा के पास भी एक मिश्र जी थे जिनसे सपा हमेशा मजबूत बनीं रहती थी। छोटे लेहिया के नाम से जाने जाने वाले स्व. जनेश्वर मिश्र । पिछले चुनवाओं में कांग्रेस के पास भी एक मिश्र जी थे। बनारस लोक सभा क्षेत्र से 2009 के चुनाव में हार गये। राजेश मिश्र एक बार यूपी में कांग्रेस के सबसे मजबूत होत हुए नेता बन रहे थे। लेकिन चुनाव मंे हार का समाना करना पड़ा । वैसे तो इस समय राजेश यूपी की राजनीति से नदारत होते हुए दिख रहे है। कांग्रेस के किसी भी दौरे या राहुल के किसी भी कार्यक्रम में नहीं दिखना तो यही माना जा रहा है। क्या कांग्रेस राजेश का विकल्प चुन ली है। या आने वाले समय में मिश्र को मिश्र के काट का जोड़ बनाए गी। भाजप के राष्ट्ीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने तो सतीश मिर के काट के लिए कलराज जी को मैदान में उतार दिया है। अब देखना है कांग्रेस किस मिश्र को चुनाव में लायेगी। सपा भ्ज्ञी इस अपने पार्टी के मिश्र जी के बिना चुनाव में उतरेगी। या किसी मिश्र जी को ढ़ूढेगी। वैसे तो बसपा मिश्र के मामले में मजबूत है। उसके पास रंग नाथ मिश्र जैसे लोग भी है। वैसे इस चुनाव में मिश्र चेहरे का बड़ा रोल है । पिछले चुनावों में भी इनका बड़ा रोल रहा है। अगर यूपी में जातिय समीकरण पर एक नजर डाले जो । 54 फीसदी ओबीसी है। हालांकि ओबीसी जातियों के वोटरों को रिझाने के लिए सभी पार्टियों के पास जोर दार विकल्प है । चाहे वो यूपी के क्षेत्रिय दल हो या केन्द्रीय दल । सभी प्रकार के वोटरों पर इन की नजर है।

यूपी विधान सभा चुनाव के अन्त तक तरंग भारत पर आप रोचक मुद्दे पड़ने को पाते रहेंगे। हमारा प्रयास आप को अच्छा सा अच्छा मुद्दा देना रहेगा। आप लेखों पर अपना राय तरंग भारत पर मेल के जरिये दे सकते है। आप के मन कोई मुद्दा हो तो आप लिख भेजिए । अनपे आस पास के सभी मुद्दों को तरंग भारत पर उठा सकते है। आप बदेंगे तो भारत बदलेगा।
email.tarangbharat@gmail.com

Sunday, February 13, 2011

अभी बूढ़वा जवान है



सन्तोष पाण्डेय

कुर्सी पर बैठे बुढ़उ नेता जी सोच रहे है कि भई ये जीवन भी कैसा होता है। कभी बचपना में सड़क पर दौड़ते रहते थे लेकिन अब येसा समय आ गया है कि चल भी नही सकते । क्या करे उम्र के ढलान का असर है । यही सारी बाते बुढ़उ नेता जी कुर्सी पर बैठ कर सोच रहे है । तभी पीछे से तेज स्वर में आवाज आई कि, नेता जी आवास पर है क्या। नेता जी अपने पीए से बोले कौन है, जो पूछ रहा है, जरा जाओ और देखों । नेता जी मन ही मन सोच कर खुश होने लगे की बहुत दिनों के बाद कोई पूछ रहा है। इस उम्र में मेरा कौन चाहने वाला है । पीए आया और बोला, सर कोई पेेपर वाले रिपोर्टर है , आपका इंटरव्यू लेना चाहते है। कह रहे है कि नेता जी का एक छोटा सा इंटरव्यू लेना है। नेता जी टपाक से उत्तर दिये इंटरव्यू मेरा ! पीए, हां सर आपका । मैं फीट फट हूं की नहीं । पीए, हां सर आप तो इस उम्र में भी युवा लगते है। नेता जी , ठीक है बुलाओ।
पीए गया , रिपोर्टर से सर आपको बुला रहे है। रिपोर्टर अन्दर आया और नेता जी को नमस्ते कहा । नेता जी सुने नही और तुरंत बोले । हां तो बोलिए मैं चालिस वर्षों से देश की राजनीति में सक्रिय रहा हूं। अभी भी रहना चाहता हूं। लेकिन क्या करे । जिस देश के लिए मैंने अपना जीवन लगा दिया ,उसी देश में आज मुझे हाशिए पर ढकेला जा रहा है। उधर पार्टी ने भी मुझसे मुंह फेर लिया है। रिपोर्टर बोला , नेता जी ये तो पूरी दुनिया देख रही है । आप ने जो किया है वो देश और लोगों के हित के लिए किया है। आपकी खासियत रही है कि आप कोई घोटाला नहीं किये। हां एक दो अवैध संपत्ति बना लिये है जो आपको फजीहत में डाल दी है। कभी आपका रक्त परिक्षण करवाया जा रहा है तो कभी धन की जांच हो रही है। इन बातों को छोड़िए, नेता जी मैं तो आपके साक्षात्कार के लिए आया हूं। नेता जी सुनलिए लगता है यादाश्त वापस आ गई । तुरंत नेता जी बोले पत्रकार महोद्य मैं तो आपके प्रश्नों के उत्तर दे रहा था। रिपोर्टर , नेता जी मैंने आप से अभी तक कोई प्रश्न किया ही नही । नेता जी क्या मैं छूठ बोल रहा हूं। रिपोर्टर समझ गया नेता जी से जो चाहो उगलवा लो। नेता जी पार्टी में अपनी उपेक्षा को लेकर पार्टी के सभी नेताओं को कोसना शुरू कर दिये और अंतिम तक कोसते रहे। नेता जी कहने लगे कि मैं बैठने वालों में से नहीं हूं । मैं अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगने दूंगा चाहे मुझे विपक्ष का ही दामन क्यों न पकड़ना पड़े। नेता जी बोले मैं तो विपक्ष में जाने को तैयार हूं। पत्रकार ने पूछा कि आप को विपक्ष मेेें जाने से क्या फायदा होगा। नेता जी बोले , अरे पत्रकार महोदय् यही तो राजनीति है, मुझे कहा नुकसान होने वाला है । नुकसान तो उस पार्टी को होगा जिसके लिए मैं चालिस वर्षों से काम किया। नेता जी फिर बोले अरे भाई जनता भी कोई चीज होती है कि नहीं वो तो मेरे साथ है। कम से कम 10 प्रतिशत वोट काट दूंगा उतना ही काफी होगा। नेता जी सीना उतान कर के बोले यही तो मै सोच रहा हूं। नेता जी अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नही कर पा रहे है। जहां मंच मिल जाता है वहीं चढ़ जा रहे है। और मंच से जनता के बीच में एक शिगुफा छोड़ कर चले जा रहे है। जनता भी इस बात को लेकर पशोपेश में है कि आखिर ये बूढ़वा क्या चाह रहा है। और नेता जी अपने आप को बुढ़उ मानने को तैयार नही है । मंच से कभी कभी कारण भी बता देते है । जवान नहीं होता तो आज मेरी ये दशा नही होती। जवानी ने ही मेरी राजनीति पर ग्रहण लगा दिया । तभी पीछे से आवाज आई की हमारा नेता कैसा हो। लोगों ने तेज स्वर में बोला बूढ़उ जी जैसा हो। नेता जी इंटरव्यू छोड़ खड़े हो गये और बोले तुम लोग पगला गये हो। अभी तो मैं जवान हूं।



अभी बूढ़वा जवान है


अभी बूढ़वा जवान है
सन्तोष पाण्डेय
कुर्सी पर बैठे बुढ़उ नेता जी सोच रहे है कि भई ये जीवन भी कैसा होता है। कभी बचपना में सड़क पर दौड़ते रहते थे लेकिन अब येसा समय आ गया है कि चल भी नही सकते । क्या करे उम्र के ढलान का असर है । यही सारी बाते बुढ़उ नेता जी कुर्सी पर बैठ कर सोच रहे है । तभी पीछे से तेज स्वर में आवाज आई कि, नेता जी आवास पर है क्या। नेता जी अपने पीए से बोले कौन है, जो पूछ रहा है, जरा जाओ और देखों । नेता जी मन ही मन सोच कर खुश होने लगे की बहुत दिनों के बाद कोई पूछ रहा है। इस उम्र में मेरा कौन चाहने वाला है । पीए आया और बोला, सर कोई पेेपर वाले रिपोर्टर है , आपका इंटरव्यू लेना चाहते है। कह रहे है कि नेता जी का एक छोटा सा इंटरव्यू लेना है। नेता जी टपाक से उत्तर दिये इंटरव्यू मेरा ! पीए, हां सर आपका । मैं फीट फट हूं की नहीं । पीए, हां सर आप तो इस उम्र में भी युवा लगते है। नेता जी , ठीक है बुलाओ।
पीए गया , रिपोर्टर से सर आपको बुला रहे है। रिपोर्टर अन्दर आया और नेता जी को नमस्ते कहा । नेता जी सुने नही और तुरंत बोले । हां तो बोलिए मैं चालिस वर्षों से देश की राजनीति में सक्रिय रहा हूं। अभी भी रहना चाहता हूं। लेकिन क्या करे । जिस देश के लिए मैंने अपना जीवन लगा दिया ,उसी देश में आज मुझे हाशिए पर ढकेला जा रहा है। उधर पार्टी ने भी मुझसे मुंह फेर लिया है। रिपोर्टर बोला , नेता जी ये तो पूरी दुनिया देख रही है । आप ने जो किया है वो देश और लोगों के हित के लिए किया है। आपकी खासियत रही है कि आप कोई घोटाला नहीं किये। हां एक दो अवैध संपत्ति बना लिये है जो आपको फजीहत में डाल दी है। कभी आपका रक्त परिक्षण करवाया जा रहा है तो कभी धन की जांच हो रही है। इन बातों को छोड़िए, नेता जी मैं तो आपके साक्षात्कार के लिए आया हूं। नेता जी सुनलिए लगता है यादाश्त वापस आ गई । तुरंत नेता जी बोले पत्रकार महोद्य मैं तो आपके प्रश्नों के उत्तर दे रहा था। रिपोर्टर , नेता जी मैंने आप से अभी तक कोई प्रश्न किया ही नही । नेता जी क्या मैं छूठ बोल रहा हूं। रिपोर्टर समझ गया नेता जी से जो चाहो उगलवा लो। नेता जी पार्टी में अपनी उपेक्षा को लेकर पार्टी के सभी नेताओं को कोसना शुरू कर दिये और अंतिम तक कोसते रहे। नेता जी कहने लगे कि मैं बैठने वालों में से नहीं हूं । मैं अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगने दूंगा चाहे मुझे विपक्ष का ही दामन क्यों न पकड़ना पड़े। नेता जी बोले मैं तो विपक्ष में जाने को तैयार हूं। पत्रकार ने पूछा कि आप को विपक्ष मेेें जाने से क्या फायदा होगा। नेता जी बोले , अरे पत्रकार महोदय् यही तो राजनीति है, मुझे कहा नुकसान होने वाला है । नुकसान तो उस पार्टी को होगा जिसके लिए मैं चालिस वर्षों से काम किया। नेता जी फिर बोले अरे भाई जनता भी कोई चीज होती है कि नहीं वो तो मेरे साथ है। कम से कम 10 प्रतिशत वोट काट दूंगा उतना ही काफी होगा। नेता जी सीना उतान कर के बोले यही तो मै सोच रहा हूं। नेता जी अपनी उपेक्षा बर्दाश्त नही कर पा रहे है। जहां मंच मिल जाता है वहीं चढ़ जा रहे है। और मंच से जनता के बीच में एक शिगुफा छोड़ कर चले जा रहे है। जनता भी इस बात को लेकर पशोपेश में है कि आखिर ये बूढ़वा क्या चाह रहा है। और नेता जी अपने आप को बुढ़उ मानने को तैयार नही है । मंच से कभी कभी कारण भी बता देते है । जवान नहीं होता तो आज मेरी ये दशा नही होती। जवानी ने ही मेरी राजनीति पर ग्रहण लगा दिया । तभी पीछे से आवाज आई की हमारा नेता कैसा हो। लोगों ने तेज स्वर में बोला बूढ़उ जी जैसा हो। नेता जी इंटरव्यू छोड़ खड़े हो गये और बोले तुम लोग पगला गये हो। अभी तो मैं जवान हूं।

Sunday, January 30, 2011

बापू ये क्या हो रहा है...


बापू ये क्या हो रहा है...
निकल पड़े दो डग जिधर...भारत गावों में बसता है ...सत्य और अहिंसा ... ये सब बापू के है ...इसका उल्लेख बड़े.बड़े मंचों से नेता बड़े श्रद्धा से करते है...लेकिन जब घोटला करना होता है तब महात्मा गांधी को भूल जाते है। पूरे विश्व में भारत की पहचान गांधी के नाम से होती हैं । पिछले दिनों एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी। आज बापू का निर्वाण दिवस है । न्यूज पेपरों में बड़े -बड़े विज्ञापन छपे मिलेंगे। एक दो लेख छपे मिल जाएगें । उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाएगे। क्या गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि हैं । कई राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों में गांधी केे बड़े -बड़े पोस्टर लगे मिल जाएगें । लेकिन गांधी के आदर्शाें पर कितने चलते है यह तो उनके घोटालों से पता लगाया जा सकता है। मजे कि बात है गांधी के नाम को कांग्रेस पार्टी ज्यादा भुनाती है लेकिन इस समय वहीं महात्मा गांधी के आदर्शाें की खूब खिल्ल्यिां उड़ा रही है। घोटालों की सरकार बन गई है। अगर आज गांधी होते तो तुरंत कह देते की अपने पोस्टरों से हमें हटा दो। 176 करोड़ का घोटला, आदर्श हाउसिंग घोटला पहली बार हुआ है हालांकि ऐसे घोटाले गांधी के देश में होते रहे है। काॅमनवेल्थ गेम्स में भी घोटला कर दिया घोटाले बाजों ने । जानवरों का चारा खा जाते है गांधी के देश में । सीएम से लेकर डीएम तक भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है गांधी के देश में। गांधी ने खुद कहा था अपना जो कुछ हो उसका इस प्रकार उपयोग करो जिससे दूसरे की मिलकियत को नुकसान न पहुंचे। हां एक बात जरूर सुनने को मिल जाती है मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। हां आज मैं भी मजबूर हूं कुद लिखने के लिए । दिल नहीं मान रहा था इस लिए लिख रहा हूं। बापू आप तो नोट में बैठे हो जिसके लिए अमीर -गरीब सभी परेशान है। क्या-क्या कर डाल रहे है। कब आप नोट से बाहर आकर कहोगेें कि बेटा नोट का नहीं जीवन का महत्व है। भारत का गांव अभी भी वही है। बदला है तो उनका जीवन और भी तंगी में जी रहे है। किसान तो आत्म हत्या कर रहा है। गांधी आप के देश में ये क्या हो रहा है।