Sunday, March 6, 2011

युवा बनेगें जीत के कर्णधार



भारत को अर्थ व्यवस्था के लिए कृषि प्रधान देश कहा जाता है लेकिन शक्ति के लिए भारत का युवा । जीं हां इस बार उत्तराखण्ड के विधान सभा चुनाव में युवाओं को विशेष शक्ति नहीं बल्कि कर्णधार माना जा रहा है। यूं तो उत्तराखण्ड युवा उत्तराखण्ड माना जाता है मतलब युवाओं का उत्तराखण्ड । लेकिन जब से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है तब से इस प्रदेश की कमान बुजुर्ग नेताओं के हाथ में रही है। लेकिन भाजपा ने जब से रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बनाया तभी से प्रदेश में एक बयार बह चली की अब प्रदेश में युवाओं को तहजीब मिलेगा। इस बार निशंक सरकार वहीं कर रही है जो यहा का युवा चाहता है। मसलन पंद्रह वर्षों से देहरादून डीएवी पीजी कालेज का दीक्षांत समारोह नहंी हुआ था जिसको निशंक के जरिए पूरा किया । दीक्षांत समारोह को भाजपा के पूर्व राष्ट्ीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में संपन्न किया गया । उत्तराखण्ड राज्य 9 नवंबर 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग हुआ था। इस नवोदित राज्य की पूरी जनसंख्या 84 लाख 89 हजार 3 सौ 39 है, जिसमें युवा मतदाताओं की संख्या 33 लाख के उपर है। आकड़ों की माने तो 18 से 29 साल के युवाओं की संख्या 18 लाख 71 हजार 241 है। इनकी मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता । लिहाजा इस बार के बजट में निशंक इन युवाओं को कुछ दे सकते है। रोजगार और शिक्षा पर यह सरकार विशेष ध्यान दे रही है। 2002 में 70 वर्षीय नारायण दत्त तिवारी को इस प्रदेश की कमान सौंप दी गई थी । लिहाजा 2006 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। भाजपा नें भी वही ंकिया । जिसका खामियाजा 2009 के लोकसभा के चुवान में उठाना पड़ा। इस बार भाजपा सजग लग रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है िकइस बार का चुनाव युवाओं को ध्यान में रखकर लड़े जाने की तैयारी रहेगी। चाहे कोई भी पार्टी हो प्रदेश में युवाओं पर बगुले की तरह नजर गड़ाये बैठी है। वैसे तो इस बार यह भी माना जा रहा है कि भाजपा, कांग्रेस व अन्य सभी युवा प्रत्याशी उतारने के फिराक में है। युवाओं को रिझाने के लिए युवा प्रत्याशियों को मैदान में उतारा जाएगा। भाजपा के पास युवा विधायको की लिस्ट अच्छी है। भाजपा के पास अगर सुरेन्द्र सिंह जीना, कुलदीप कमार, अजय टम्टा जैसे विधायकों की लिस्ट है तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पास भी करन मेहरा, प्रीतम सिंह, मनोज तिवारी जैसे युवा विधायक है। प्रदेश में इन दोनों पार्टियों को इसी लिए लाभ मिलता रहा है। और पार्टियों के पास अभी तक न तो युवा नेतृत्व है और न तो युवाओं को रिझाने के लिए युवा नेता । इस तो जिस पार्टी के पास अधिक युवा कैन्डीडेट होगें वहीं सरकार बनाने में सक्षम होगी। निशंक सरकार पूरी तरह से युवाओं के लिए कार्य कर रही है। यहां तक की निशंक का दौरा भी स्कूल और कालेजों से हो कर गुजरने का प्रयास किया जा रहा है। जो भी इस बार चुनाव में युवा ही जीत के कर्णधार बनेगे।
सन्तोष पाण्डेय