Thursday, March 19, 2009

सुबह का समय बडा ही सुन्दर होता है मोनू लेकिन क्या बताये भई/युनिवेर्सिटी जाने के लिए दो घंटे पहले से तैयार होना पड़ता है ;
पड़ाव पर पहुचाते ही \रिक्सावाला अरे भाई कहा जाना है ,पूर्वांचल आइये जल्दी से बैठिये तुंरत चले गें .दस मिनट हो जाने के बाद .किसी ने अन्दर से बोला जल्दी चलिए लेत हो रहा है .कब चले गे ।
दरेवर दोनों सीट पर अभी चार -चार लोग नही हुए है .हो जाए गे तभी चले गे .अन्दर जरा ख्सकिये भाई जी बड़ी दिक्कत हो रही है .इतने में दरिवेर सबको गाना बजाकर सुनाने लगता है .सभी शांत हो जाते है .कई स्तपो के बाद किसी तरह गाड़ी कुतुपुर के चोव्राहे को पार करती है ।
जरा अपना पैर हटाइए उतरना है .इसी तरह रस्ते भर होता रहता है .गाने की धुन में मस्त हो जाते है बैदाने वाले .युनिवेर्सिटी के पहले गेट पर रोकिये गा .इतने में कोई रिक्सा के अन्दर ठोकता है .जरा आगे रोक दीजिये गा.सात रुपये लिजेये ,दारावर नही ,आठ रुपये दीजिये ।
इतने समस्यों के बाद बच्चे युनिवेर्सिटी पहुचते है। लगता है की लडाई के मैदान में जाना है .पहले कठिन ट्रेनिग दे लो जिससे परेशानी न हो .क्योकि जहा चाह होती है ,
वही राह हो टी है।
मोनू मेहनत का फल आछा होता है .तुम्हें पता नही है ।
संतोषम परम सुखं .