Saturday, February 26, 2011

यूपी में चेहरे की काट का होड़




सन्तोष पाण्डेय

एक कहावत सभी ने सुनी होगी। लोहे को लोहे से काटा जाता है । ठीक उसी प्रकार से उत्तरप्रदेश में हो रहा है। उत्तरप्रदेश में एक नहीं कई चेहरे राजनीति में हलचल मचाये हुए है । चाहे वो मिश्र हो या पुनिया ।बात तो राजनीति की है। इन्हीं चेहरों की काट करने के लिए नये चेहरों को सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि जो चेहरे सामने लाए जा रहे है ।वो कभी बहुत मजबूत माने जाते थे। बात बस इतनी है कि उन्हें बीच में कुछ समय के लिए जैसे भूला दिया गया हो। हम बात कर रहे है मिश्रा चेहरों की । पिछले लोकसभा सभा या 2007 के विधान सभा चुनावों में सबसे ज्यादा नुकशान हुआ है तो केवल बस केवल भाजपा को । राजनीतिक गलियारे में जो चर्चा रही उसमें एक बात हमेशा की जा रही थी की भाई बसपा के पास तो सतीश मिश्र जी है। तो कुछ लोगों ने टपाक से कहा कि तो क्या भाजपा के पास कलराज जी नही है। हां कलराज जी का चुनाव में प्रयोग नहीं किया । हो सकता है उसका परिणाम यही रहा हो। सपा के पास भी एक मिश्र जी थे जिनसे सपा हमेशा मजबूत बनीं रहती थी। छोटे लेहिया के नाम से जाने जाने वाले स्व. जनेश्वर मिश्र । पिछले चुनवाओं में कांग्रेस के पास भी एक मिश्र जी थे। बनारस लोक सभा क्षेत्र से 2009 के चुनाव में हार गये। राजेश मिश्र एक बार यूपी में कांग्रेस के सबसे मजबूत होत हुए नेता बन रहे थे। लेकिन चुनाव मंे हार का समाना करना पड़ा । वैसे तो इस समय राजेश यूपी की राजनीति से नदारत होते हुए दिख रहे है। कांग्रेस के किसी भी दौरे या राहुल के किसी भी कार्यक्रम में नहीं दिखना तो यही माना जा रहा है। क्या कांग्रेस राजेश का विकल्प चुन ली है। या आने वाले समय में मिश्र को मिश्र के काट का जोड़ बनाए गी। भाजप के राष्ट्ीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने तो सतीश मिर के काट के लिए कलराज जी को मैदान में उतार दिया है। अब देखना है कांग्रेस किस मिश्र को चुनाव में लायेगी। सपा भ्ज्ञी इस अपने पार्टी के मिश्र जी के बिना चुनाव में उतरेगी। या किसी मिश्र जी को ढ़ूढेगी। वैसे तो बसपा मिश्र के मामले में मजबूत है। उसके पास रंग नाथ मिश्र जैसे लोग भी है। वैसे इस चुनाव में मिश्र चेहरे का बड़ा रोल है । पिछले चुनावों में भी इनका बड़ा रोल रहा है। अगर यूपी में जातिय समीकरण पर एक नजर डाले जो । 54 फीसदी ओबीसी है। हालांकि ओबीसी जातियों के वोटरों को रिझाने के लिए सभी पार्टियों के पास जोर दार विकल्प है । चाहे वो यूपी के क्षेत्रिय दल हो या केन्द्रीय दल । सभी प्रकार के वोटरों पर इन की नजर है।

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