Friday, October 1, 2010

जब गांधी किये गये थे बिरादरी से बाहर

जब गांधी किये गये थे बिरादरी से बाहर



आज विलायत का मतलब विदेश है। सामान्य लोगों कि बाते छोड़ दि जाए आज समाज का संभ्रात वर्ग विदेश यात्रा को अपना स्टेटस सिम्बल मानता है। जो विदेश यात्रा करके लौटता है गांव में उसकी एक अलग स्थिति होती है। लेकिन जब हम मोहनचंद करमचंद गांधी को याद करते है तो जरा गांधी के उन क्षणों को याद कर ले जो उस समय अभिसाप समझे जाते थे आज वही चीजे सम्मानित और स्टेटस मार्क बन गई है। बात उन दिनों कि है जब मोहनचंद करमचंद गांधी विलायत जाने कि तैयारी में थे। गांधी ने अपने आत्मकथा में लिखा है कि मै माता का आशिर्वाद लेकर और कुछ महीनों का बच्चा स्त्री के गोंद में छोड़कर बड़ी उमंगों के साथ बंबई जो आज मुंबई पहंुचा। वहां पर उनके मित्रों ने गांधी जी के बड़े भाई से कहा कि जून-जुलाई मंे हिंद महासागर में तूफान उठते रहते है। और इसकी पहली यात्रा है इसलिए इसको दिवाली के अर्थात नवंबर में भेजना चाहिए। इससे गांधी के बड़े भाई ने गांधी जी कि यात्रा टाल दी ।

इन्ही दौरान गांधी के बिरादरी में खलबली मची । पंचायत बुलाई गई । कोई मोढ़ बनिया अबतक विलायत नही गया था और मैं जा रहा हूं तो मुझे जवाब तलब होना ही चाहिए । मुझे पंचायत में हाजिर होने का हुक्म हुआ। मैं गया । मुझे पता नही कि मुझमें कहा से यकायक हिम्मत आ गई । मुझे हाजिर होने में न हिचक हुई और न डर लगा । सरपंच जी ने कहा कि ‘ बिरादरी समझती है कि तुम्हारा विलायत जाने का विचार ठीक नही है। हमारे धर्म में समुद्र-यात्रा की मनाही है। फिर हम यह भी सुनते है कि विलायत मंे धर्म की रक्षा नही हो सकती है। वहां साहबों के साथ खाना-पीना पड़ता है।’
मैने उत्तर दिया ‘ मुझे तो ऐसा लगता है कि विलायत जाने में तनिक अधर्म नही है। मुझे तो वहा जाकर विद्याभ्यास ही तो करना हैं । फिर जिन चिजों का आपको डर है। उनसे दूर रहने मैं अपनी माता के सामने प्रतिज्ञा कर चुका हूं । अतः उनसे दूर रह सकूंगा।
इन जवाबों से मुखिया जी तिलमिला गये और मुझे दो चार खरी खोंटी भी सुनाई। मैं शांत बैठा रहा मुखिया ने हुक्म दिया कि यह लड़का आज से बिरादरी से माना जाएगा। जो कोई इसे मदद करेगा या बिदा करने जाएगा वह बिरादरी से बाहर होगा। और उसके अपर सवा रूपये का जुर्माना होगां ।
साभार सत्य के प्रयोग

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